लिवर अर्थात यकृत का महत्व और सेहत



अंग्रजी में एक कहावत है –
Is life worth living?
Yes, it all depends on the liver.

अर्थात
क्या जीवन में कुछ आनंद है?
हाँ, यह सब कुछ लिवर (जिगर) पर निर्भर है।

इससे आप भली-भांति अनुमान कर सकते है कि लिवर कितना महत्व रखता है।

लिवर (liver) – अर्थात यकृत, जिगर, कलेजा

लिवर शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि है। रक्त के प्रत्येक कण को हर घंटे में कम से कम तीन बार लिवर में से अवश्य गुजरना पडता है।

लिवर मे ऐसा रस विद्यमान रहता है जो हर प्रकार के विष को बेकार (neutralise) कर देता है।

यदि लिवर थोड़े समय के लिए भी इस कर्तव्य से मुंह मोड़ ले, तो हमारा रक्त विषैला हो जाता है, और जिसके कारण धीरे धीरे मनुष्य बीमार होता जाता है।

लिवर का पाचन की प्रक्रिया में क्या रोल है?

वह अवस्था लेते हैं जब भोजन, आमाशय अर्थात stomach से नीचे आता है।

अमाशय के बाद लिवर का पाचक रस जिसे पित्त (bile) कहते है, भोजन में मिलकर उसे बहुत हद तक पचा देता है, और बाद में यह भोजन आंतों में जाकर पूरा पच जाता है।

परन्तु अभी वह भोजन रक्त में परिवर्तित नहीं हुआ है। आंतों से भोजन का पचा हुआ अच्छा भाग, एक पतले दूधिया रस के रूप में सबसे पहले लिवर में आता है। यहाँ उसके समस्त मल साफ किये जाते है, और रक्त का लाल रंग उसे मिलता है।

यदि लिवर की मशीन खराब हो जाए तो क्या होगा?

यदि हमारे बुरे खान पान, कुपथ्यों और कुरीतियों के कारण अथवा मलेरिया आदि किसी रोग के कारण लिवर की मशीन बिगड़ जाए, तो रक्त लिवर में से मैल समेत निकल आता है। और सम्पूर्ण शरीर में उसी दशा में घूमता रहता है तथा विष बिखेरता फिरता है।

मन और स्नायुओं (nervous system) पर भी उसका विषैला प्रभाव पड़ता है।

इससे मनुष्य कुछ चिड़चिड़ा सा हो जाता है। चिड़चिड़ा दिमाग न मित्र देखता है, न शत्रु। जो आगे आया उसी को डांटा-फटकारा

इसलिए कहते हैं कि जीवन, लिवर ओर प्रेम एक दूसरे से बंधे हुए हैं, और जिनका लिवर स्वस्थ नहीं वे किस प्रकार जीवन को बेकार समझते हैं और पूछते हैं – Is life worth living? क्या इस जीवन का कोई लाभ है?

लिवर की खराबी क्या दूसरे अंगो को प्रभावित करती है?

अब यह देखना है कि शारीरिक दृष्टि से अन्य अंगों पर लिवर की खराबी का क्या प्रभाव है?

जब लिवर में से पाचक रस पित्त (bile) हमारे भोजन के साथ नहीं मिलता तब पेट में गैस हो जाती है, अफारा और भारीपन रहता है और पेट में पीड़ा होने लगती है।

भोजन का शकिवर्धक भाग भली भांति अतग नहीं होता। परिणाम यह होता है बहुत ही थोडा रक्त उत्पन्न होता है।

सारा शरीर रक्त की तरावट की कगी से ऐसे सूखने लगता है, जैसे जलवृष्टि की कमी के कारण खेती सूखने लगती हैं।

यही लिवर का पाचक रस खराब होकर छाती की जलन, मुंह का कडवापन, खट्टी डकार का कारण बनता है।

पित्त अर्थात बाइल (bile) का रंग पीला होता है। यह एक पतली सी नली (bile duct) के मार्ग से आमाशय और आंतों के जोड़ में खाने से मिलता है।

जब पित्त के इस रास्ते में बिगाड़ होता है तो वह रक्त में मिलने लगता है और उसे पीला कर देता है। इस प्रकार पीलिया का कारण बनता है।

आगे यह देखना है कि, लिवर क्यों खराब होता है और उस खराबी को किस प्रकार दूर किया जा सकता है।

जीभ का चस्का

हम बेसमझी से समझ बैठते हैं कि हमारा शरीर सुदृढ है। हम जो चाहें सो पियैं, जिस चीज को जी चाहे खायें। दिन दिन भर चरते रहे, खूब घी खायें, मिठाईयां खायें, अंडे मांस खायें, दावत और पार्टियों में जो कुछ आगे आए चट कर जायें, घर में भांति भांति के भोजन बने, शराब, तंबाकू, चाय खटाई मिठाई खूब खाते रहें।

सारांश यह है कि, मनुष्य को लगता है की किसी भी चस्के से यह 2 इंच चौड़ी और 4 इंच लंबी जीभ वंचित न रह जाए।

और इसके बाद इतने भोजन को पचाने के लिए व्यायाम आदि की कोई आवश्यकता ना समझना हमारा स्वभाव बन जाता है।

किंतु यही भूले और खराबीयाँ हमारे जिगर की मशीन के सत्यानाश का कारण बनती है। इन सब विकारों से निर्धन लोग बहुधा बचे रहते हैं।

अमीरों का रोग

एक नवाब साहब की रानियां मिल बैठती है, तो जिगर की बातें करती है। मेरा जिगर बढ़ गया है, उसका जिगर ठीक से काम नहीं कर रहा है, भारी मालूम होता है, इसका जिगर दर्द कर रहा है आदि आदि।

एक दासी वह चर्चा सुनती है, और हैरान होती है कि आखिर यह जिगर क्या है। बहुत झिझकते हुए वह बड़ी नम्रता के साथ उनसे पूछती है कि आप जिगर की चर्चा करती है, क्या मेरा भी जिगर है?

एक वृद्ध रानी उसे समझाती है कि “तुम सुबह से रात तक मेहनत करती हो, तुम भला जिगर की बीमारी को क्या जानो? यह रोग तो अमीरों का रोग है, जिन्हें खाने और सोने के सिवाय और कोई काम नहीं। जिगर तो सबके अंदर होता है, लेकिन मेहनती आदमियों के जिगर ऐसे नियम पूर्वक अपना काम करते हैं कि मालूम ही नहीं होता कि जिगर है भी या नहीं।”

आराम तलब और गरिष्ठ भोजन करने वालों तथा बार-बार खाने वालों का जिगर इस प्रकार कराहता है जिस प्रकार ऊंट जब कि उसे खूब ला दिया जाता है।

लिवर की सेहत

जिगर को कैसे तंदरुस्त रखें?

उपवास, हल्का भोजन, दो भोजनों के बीच में समय का काफी अंतर, भोजन के एक-दो घंटे बाद पानी पीना तथा अन्य समय पर अनेक बार पानी पीते रहना, यही लिवर की सर्वोत्तम चिकित्सा है।

पालक, मेथी, बथुए का साग, करेला, टमाटर, दलिया, दूध, दही, छाछ, संतरा और अनार जैसे भोजन लिवर के लिए अति उत्तम है।

घी, उड़द की दाल, भिंडी, कचालू (बडे साइज की अरबी), मांस की बोटी, मैदा, हलवा बंद कर दे।

भोजन करने के बाद कुछ देर चल फिर लिया करें।

साग भाजी में अदरक और काली मिर्च डालना तथा भोजन करने के बाद थोड़ी सौंफ लेना बहुत हितकारी है। दो रत्ती नौसादर दो घूंट पानी में घोल कर पी लेना लाभदायक है।

एनिमा आयुर्वेदिक, यूनानी और एलोपैथी में बहुत लाभदायक माना गया है। आधा सेर पानी का एनिमा आंतों के मैल को साफ करता है, और उस सफाई का असर तत्काल लिवर को पहुंचता है। और उसके कार्य में फुर्ती आ जाती है।

उसका मुख्य पाचक रस अच्छी मात्रा में निकलने लगता है, जो कि अपने पाचक गुणों के अतिरिक्त हर प्रकार के भीतरी विषों को हानि रहित (neutralise) करने की शक्ति रखता है।

उपवास

पहले औषधि और एनिमा के बिना प्रयत्न करें

एक-दो दिन जितना सहन हो सके, कुछ ना खायें, केवल पानी पियें। पहले 6-7 घंटे बहुत भूख लगेगी, उसकी चिंता ना करें।

भूख स्वभावत लगती है, जब भोजन करने का बंधा हुआ समय आ जाता है। लेकिन बाद में उपवास से शरीर में एक आनंद सा आ जाता है।

उपवास के द्वारा एक तो भीतर पड़ा हुआ भोजन कण कण करके भस्म हो जाएगा। उसके बाद, कुछ दिन के लिए केवल दूध, सब्जी, फलों के रस का सेवन करें। और उसके बाद भोजन आरंभ कर दे।

इस क्रिया से लिवर जवान हो उठेगा और फिर सावधानी से रहने से आपके अंतिम सांस तक आपकी सेवा करेगा।