धनुरासन करने से पहले, भुजंगासन और शलभासन का अभ्यास करें।
- भुजंगासन की लिंक निचे दी गयी है –
- भुजंगासन (सर्पासन, कोबरा पोज़)
इस आसन को, धनुरासन क्यों कहते है?
इस आसन में शरीर का आकार धनुष की तरह दिखता है;
इसलिए इस आसन को धनुरासन कहा जाता है।
इस आसन में घुटनों से सिर तक का शरीर,
पीछे की तरफ धनुष की तरह खींचा जाता है।
साथ ही हाथों से पैरों की एड़ियों को पकड़ते है
और ऊपर की और खींचते है,
जिसकी वजह से हाथ और घुटनो से निचे के पैर
धनुष के तार जैसे दिखते है।
इसलिए, इस आसन को धनुरासन नाम दिया गया है।
एक आसन में दो आसनों का लाभ
धनुरासन शरीर के लिए बेहद फायदेमंद है।
क्योंकि यह आसन, भुजंगासन और शलभासन का मिश्रण है।
दोनों आसनों के जो अलग-अलग लाभ है,
वे सब लाभ इस आसन में आ जाते हैं।
इसलिए इस योगासन के नियमित अभ्यास से,
भुजंगासन और शलभासन, दोनों का लाभ मिलता है।
लेकिन याद रखें
धनुरासन को करने में अधिक मेहनत लगती है।
इसलिए, शुरुआत में अन्य आसनों का अभ्यास करने के बाद ही,
जैसे भुजंगासन और शलभासन आदि के अभ्यास के बाद ही,
इस आसन को करना चाहिये।
अब देखते है, धनुरासन कैसे किया जाता है?
धनुरासन कैसे करें?
1. पेट के बल सोएं
जमीन पर सतरंजी या योगा मैट बिछा ले।
सबसे पहले पेट के बल सोएं अर्थात जमीन की ओर मुंह करके लेट जाएं।
अपने माथे को जमीन पर टिकाएं।
हाथों की स्थिति
हाथों को शरीर के पास रखें।
पैरों की स्थिति
अपने पैरों को, शरीर के सीध में रखें।
प्रारंभ में दोनों घुटनों के बीच थोड़ी दूरी रखने पर
अर्थात पैरों को थोड़ा अलग रखने पर
इस आसन को करना आसान हो जाता है।
बाद में कुछ दिनों के अभ्यास के बाद,
घुटनों को शरीर के सीध में रखकर कर सकते है।
शरीर की सभी मांसपेशियों को आराम दें।
2. हाथों से एड़ियों को पकडे
दोनों पैरों को घुटनों से मोड़ें।
अब अपनी बाहों को उठाएं और चित्र में दिखाए अनुसार,
दोनों हाथों से दोनों पैरों की एड़ियों को पकड़ें।
दाएं हाथ से दाएं पैर की एडी और
बाएं हाथ से बायें पैर की एडी को पकड़ें।
अपनी बाहों को सीधा रखें।
इस अवस्था में शरीर का आकार
धनुष के जैसा बन जाता है।
इसके बाद की स्थिति, जो की आसन की मुख्य अवस्था है,
उसमे शरीर का आकार, खींचे हुए धनुष की तरह हो जाता है।
3. आसन की मुख्य अवस्था – पैरों को ऊपर खींचे
साँस लेते हुए, छाती और सिर को ऊपर उठाएं।
अब पैरों को ऊपर खींचे।
इसके साथ ही हाथ भी खींचे जाएंगे और
छाती भी ऊपर उठेगी।
सांस लेते हुये अपनी जांघों, पैरों, छाती और
सिर को ऊपर की ओर उठाएं।
शरीर को बिना किसी अधिक तनाव या जोर के
जितना ऊंचा उठाया जा सकता है, उतना ही ऊंचा उठाएं।
4. धनुष के आकार की इस स्थिति में, कुछ सेकंड रुके
अपनी साँसे रोके।
लेकिन तनाव को बहुत अधिक न करें।
अपने चेहरे पर मुस्कान के साथ सीधे देखें।
इस स्थिति में दस से पंद्रह सेकंड तक रुके।
इस स्थिति में शुरुआत में दस तक गिने।
धीरे-धीरे संख्या बढ़ाएं।
5. शरीर को पहले की स्थिति में लेकर आएं
फिर धीरे-धीरे सांस छोड़े।
पैरों और छाती को जमीन पर लाएं।
एड़ियों को छोड़ें और 15 से 20 सेकंड आराम करें।
इस आसन को पांच से छह बार करें। या बिना तकलीफ के, जितनी बार किया जा सके, उतनी बार ही इस आसन को करें।
याद रखें – धनुरासन से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण बातें
1.
धनुरासन में शरीर का भार पेट पर नाभि के आसपास के क्षेत्र पर पड़ता है।
इसलिए पेट खाली रहने पर ही इस आसन को करना चाहिए।
2.
इस आसन को करते समय जितनी क्षमता हो उतना ही तनाव दें,
अर्थात पीछे की ओर मुड़े।
धनुरासन करते समय हम पहले, पैरों को ऊपर खींचते है,
फिर शरीर के ऊपरी हिस्से को और गर्दन को ऊपर करते है।
जिसकी वजह से इस आसन में पेट पर बहुत दबाव पड़ता है,
इसलिए जितना हो सके उतना ही पैरों और हाथों को खींचे।
बहुत अधिक तनाव ना दे।
3.
शुरुआत में पैरों में अंतर रखने से
आसन करने में आसानी होती है।
किन्तु बाद में अभ्यास होने पर
पैरों को सीधा रखने का प्रयास करे।
4.
आसन की अंतिम स्थिति तक पहुंचने के लिए
अपनी भुजाओं को सीधा ही रखे, मोड़ें नहीं।
5.
यह जरूरी नहीं है कि पहले ही दिन आसन की अच्छी स्थिति आ जायेगी।
कुछ दिनों के अभ्यास से रीढ़ का लचीलापन बढ़ेगा।
जांघ की मांसपेशियों में खिंचाव की क्षमता बढ़ जाएगी।
तब यह आसन करने में आसानी होगी।
6.
इस आसन को धीरे-धीरे ही सीखना चाहिए।
यदि आप पहली बार में ही अत्यधिक उत्साह के साथ
अंतिम स्थिति में आने के लिए बहुत कोशिश करेंगे,
तो जांघों, कंधों और कमर की मांसपेशियों में
तनाव और खिंचाव पैदा हो सकता है।.
इसलिए इस आसन को क्षमता के अनुसार ही करे,
या योग प्रशिक्षक के मार्गदर्शन में करे।
7.
इस आसन को सब कोई सुलभता से नहीं कर सकते,
इसलिए जो इसको ना कर सके,
पहले भुजंगासन और शलभासन का ही अभ्यास करें।
धनुरासन के लाभ
1. दो आसनों का लाभ
इस आसन में भुजंगासन और शलभासन दोनों का मेल है।
इसलिए, धनुरासन में दोनों आसनों के फायदे मिल जाते है।
2. पीठ और रीढ़ के लिए
पीठ और पेट में मांसपेशियों को मजबूत करता है।
यदि आप नियमित रूप से इस आसन को करते हैं, तो यह आपकी पीठ के कूबड़ को कम करने में आपकी मदद करेगा।
हलासन की तरह, यह आसन रीढ़ को लचीला बनाता है। और रीढ़ की हड्डियां मजबूत बनती हैं।
3. पेट के लिए
इस आसन से पेट को अच्छा व्यायाम मिलता है।
इस आसन में पेट में नाभि के आसपास के एरिया पर दबाव पड़ता है। जिसकी वजह से पेट और आँतड़ियों में रक्त संचार बढ़ जाता है।
पेट की आँतों की कार्यक्षमता बढ़ने के कारण, भूख और पाचन की क्रियाओं में सुधार आता है।
इसलिए, यह पुरानी कब्ज, अपच और विभिन्न पेट की बीमारियों से छुटकारा पाने में मदद करता है।
इस आसन में पेट पर ही सब शरीर का बोझ आता है। परिश्रम का केंद्र भी वही है और शेष भाग ऊंचाई पर रहता है। इन सब कारणों से, रक्त प्रवाह बड़ी जोर से पेट की तरफ जाता है।
इसलिए, यह आसन, आंतों के विभिन्न विकारों के लिए और गैस की समस्या के लिए बहुत फायदेमंद है।
इस आसन से पेट के समस्त दोषों की निवृत्ति हो जाती है। जठराग्नि बढ़ती है और प्राण शक्ति भी बढ़ती है, जिसका शरीर स्वास्थ्य पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ता है।
4. हाथ और पैर के जोड़ों और मांसपेशियों के लिए
पैर और बांह की मांसपेशियां मजबूत हो जाती हैं। छाती, गर्दन और कंधे मजबूत बनते हैं।
साथ ही, पैरों, घुटनों और हाथों के, गठिया रोग में भी फायदा होता है।
रीढ़, कंधों, जांघों को मजबूत बनाता है। कमर और पैरों की ताकत बढ़ाता है।
पेट, पीठ, हाथ तथा जांघ आदि के स्नायु पर, अच्छा तनाव आता है, इसलिए वे मजबूत बनते हैं।
5. उत्साह और ऊर्जा के लिए – आलस दूर करने के लिए
यह आसन आलस को दूर करता है। उत्साह और ऊर्जा बढ़ाता है।
जो व्यक्ति नियमित रूप से, हलासन, मयूरासन और धनुरासन करते हैं; वे कभी आलसी नहीं होते। वे लोग हमेशा ऊर्जावान और सक्रिय होते हैं। उनके शरीर उत्साह और जोश से भरे हुए होते हैं।
तनाव और आलस्य से राहत के लिए, यह एक बढ़िया आसन है। इस आसन से दिन भर ताजगी महसूस होती है।
यदि यह आसन नियमित रूप से किया जाए, तो शरीर आलसी नहीं होता है।
6. शरीर की चर्बी
यह आसन शरीर की चर्बी को कम करता है। जिससे मोटापा कम होता है।
7. सांस लेने की क्षमता
इस आसन को करने से, सांस लेने की क्षमता में वृद्धि होती है। छाती चौड़ी हो जाती है।
छाती खूब फैली हुई रहती है और श्वास-प्रश्वास की क्रिया पर किसी प्रकार की रोक ना होने से, बहुत शुद्ध रक्त इस ओर जाता है।
8. प्राण नाड़ीयों को नवजीवन
प्राण नाड़ीयों (nerves) की मुख्य शाखायें मेरुदंड से निकलती है, जो पीठ में ही होता है। इसलिए इस आसन में प्राण नाड़ियों को नवजीवन प्राप्त होता है।
प्राण नाड़ीयों को नवजीवन प्राप्त होना ऐसा है, जैसे पेड़ की जड़ों में पानी देना, क्योंकि शरीर की सब क्रियाएं ऐच्छिक अथवा अनैच्छिक (जैसे अन्न का पाचन, दिल की धड़कन) सब इन प्राण नाड़ीयों के ही अधीन है।
जैसे हलासन में मेरुदंड को भीतर गोलाई मिलती है, इस आसन में बाहरी गोलाई मिलती है। और इस प्रकार मेरुदंड को लचीला करने में यह आसन उपयोगी होता है।
9. धनुरासन का महिलाओं में लाभ
यह आसन महिलाओं के लिए बहुत फायदेमंद है, क्योंकि यह मासिक धर्म की अनियमितता और प्रजनन प्रणाली की शिकायतों को दूर करता है।
धनुरासन कब नहीं करना चाहिए?
जिन लोगों को उच्च रक्तचाप, हर्निया, पेप्टिक अल्सर, कमजोर दिल है उन्हें इस आसन को नहीं करना चाहिए।
हर्निया, गर्दन के विकार, पीठ दर्द, सिरदर्द, माइग्रेन, पेट की सर्जरी वाले लोगों को धनुरासन नहीं करना चाहिए।
महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान, इस आसन को नहीं करना चाहिए।
किसी भी बीमारी में याद रखे
हालांकि, धनुरासन, पीठ, गर्दन, छाती और पेट से संबन्धित कई बीमारियों से बचाता है, और उनमे लाभ पहुंचाता है, लेकिन, आसन दवा का विकल्प नहीं हो सकता है, इसलिए, किसी भी बीमारी में डॉक्टर से संपर्क करे और उनकी सलाह अनुसार उचित उपचार करे।
धनुरासन – Dhanurasan
धनुरासन के इस आर्टिकल में हमने देखा –
- इस आसन को, धनुरासन क्यों कहते है?
- धनुरासन कैसे करें?
- याद रखें – धनुरासन से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण बातें
- धनुरासन कब नहीं करना चाहिए?
- ऐसी कौन सी परिस्थितयां है, जब धनुरासन ना करें?
- धनुरासन के लाभ
- दो आसनों का लाभ
- पीठ और रीढ़ के लिए
- पेट के लिए
- हाथ और पैर के जोड़ों और मांसपेशियों के लिए
- उत्साह और ऊर्जा के लिए – आलस दूर करने के लिए
- शरीर की चर्बी
- सांस लेने की क्षमता
- प्राण नाड़ीयों को नवजीवन
- धनुरासन का महिलाओं में लाभ
- किसी भी बीमारी में, इस आसन से सम्बंधित सबसे महत्वपूर्ण बात