Hypothyroidism Treatment
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<< 4. हाइपोथायरायडिज्म के दुष्परिणाम
हाइपोथायरायडिज्म रोग का निदान
हाइपोथायरायडिज्म रोग का निदान – मरीज के लक्षण और थायराइड फंक्शन टेस्ट (रक्त में हार्मोन की मात्रा का स्तर) के द्वारा किया जाता है।
- रक्त में
- टीएसएच की सामान्य से अधिक मात्रा और
- थायरोक्सिन (T4) की सामान्य से कम मात्रा
- हाइपोथायराइडिज्म होने का संकेत देती है।
जैसा की हमने देखा, पिट्यूटरी ग्रंथि टी एस एच हार्मोन के द्वारा थायराइड ग्रंथि का नियंत्रण करती है इसलिए जब शरीर में थायराइड हार्मोन की कमी हो जाती है तब पिट्यूटरी टी एस एच हार्मोन अधिक मात्रा में बनाना शुरु कर देती है। इसलिए रक्त में टी एस एच हार्मोन की सामान्य से अधिक मात्रा दिखाई देती है।
टीएसएच के स्तर की जांच के फायदे
हाइपोथायरायडिज्म के निदान के लिए टीएसएच के स्तर की जांच सबसे अच्छी और संवेदनशील जांच है।
संवेदनशील जांच इसलिए क्योंकि जब प्रारंभिक अवस्था में हाइपोथायराइडिज्म के किसी प्रकार के लक्षण नजर नहीं आते है, तब भी रक्त में टीएसएच की अधिक मात्रा हाइपोथायरायडिज्म होने का संकेत दे सकती है।
टीएसएच के स्तर की जांच चिकित्सक को उपचार के समय में भी मदद करती है क्योंकि टीएसएच के स्तर के आधार पर हाइपोथायरायडिज्म में दी जाने वाली दवाइयों की मात्रा कम या ज्यादा की जाती हैं।
क्योंकि हाइपोथायराइडिज्म 50 से 60 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं में एक आम समस्या है, कुछ डॉक्टर्स अधिक उम्र की महिलाओं में वार्षिक जांच (routine annual examination) के समय थायराइड फंक्शन टेस्ट करने की सलाह देते हैं।
कुछ डॉक्टर्स गर्भावस्था के समय में भी थायराइड फंक्शन टेस्ट करने की सलाह देते हैं जिससे कि यदि हाइपोथायराइडिज्म हो तो उसका प्रारंभिक अवस्था में ही निदान हो सके और नियंत्रण के लिए उपचार चालू किया जा सके।
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हाइपोथायरायडिज्म का उपचार
हाइपोथायरायडिज्म के उपचार का ध्येय शरीर में थायराइड हार्मोन के स्तर को सामान्य बनाए रखना होता है, जिससे कि लक्षणों में सुधार हो सके और आगे होने वाले दुष्परिणामों से बचा जा सके।
हाइपोथायरायडिज्म में शरीर में थायराइड हार्मोन की कमी हो जाती है, इसलिए ऐसी दवा दी जाती है जो थायराइड हार्मोन के जैसा कार्य कर सकें। लिवो-थायरोक्सिन (सिंथेटिक थायराइड हार्मोन) एक ऐसी ही दवा है।
हाइपोथायरायडिज्म के उपचार के लिए डॉक्टर लिवो-थायरोक्सिन (सिंथेटिक थायराइड हार्मोन) नामक दवा देते है। यह दवा टैबलेट (मौखिक दवा) के रूप में उपलब्ध है।
लिवो-थायरोक्सिन टैबलेट मरीज को रोजाना लेना पड़ता है। अधिकतर मरीजों को यह दवा लंबे समय तक या जिंदगी भर लेना पड़ता है।
लिवो-थायरोक्सिन टैबलेट खाली पेट खाना खाने से आधा से एक घंटा पहले लेना चाहिए।
लिवो-थायरोक्सिन दवा शरीर में थायराइड हार्मोन के स्तर को सामान्य बनाए रखने में मदद करती है और लक्षणों से भी धीरे-धीरे आराम दिलाती है। सही मात्रा में इस दवा के साइड इफेक्ट नहीं के बराबर है।
एक से दो हफ्तों में हाइपोथायराइडिज्म के कारण जो थकान महसूस होती थी वह दूर होने लगती है। बढ़ा हुआ कोलेस्ट्रॉल और बढ़ा हुआ वजन भी कम होने लगता है। हाइपोथायरायडिज्म में सिंथेटिक थायराइड हार्मोन जिंदगी भर लेना पड़ता है। लेकिन इसकी मात्रा चिकित्सक टी एस एच हार्मोन के स्तर के आधार पर कम या ज्यादा कर सकते हैं।
उपचार के शुरुआती दौर में सिंथेटिक थायराइड हार्मोन की सही मात्रा तक पहुंचने के लिए चिकित्सक टीएसएच के स्तर की जांच प्रत्येक 2 से 3 महीने में करते हैं। और जब चिकित्सक को लगता है की सिंथेटिक थायराइड हार्मोन की सही मात्रा मरीज को मिल रही है और हाइपोथायराइडिज्म के लक्षणों में सुधार हो रहा है, तब टीएसएच की जांच वर्ष में एक बार की जाती है।
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