शरीर को विश्राम की आवश्यकता क्यों है?



हम थकान क्यों महसूस करते है?

किसी काम को करने के बाद हम थकान क्यों अनुभव करते है? किसी भी काम को करते समय हमारे शरीर का कुछ भाग क्षय होता रहता है और उसके फलस्वरूप उस अंग में कुछ विषैले पदार्थ उत्पन्न होते है। इन विषैले पदार्थों के कारण ही हमें थकान मालूम होती है। थकान दूर करने के लिए शरीर से इन विषैले पदार्थो का बाहर निकालना अत्यन्त आवश्यक है।

यदि हम अविराम गति से काम करते रहे तो ये विषैले पदार्थ शरीर में एकत्रित होते है और शीघ्र बाहर नही निकल सकते। ये विषैले द्रव्य अंग विशेष में थकान उत्पन्न करते है और उसे काम करने के लिए निशक्त बना देते है। साथ ही ये विषैले द्रव्य उस अंग विशेष के तन्तुओं को भी हानि पहुँचाते है। अतः इनका शीघ्र से शीघ्र वहाँ से हटाना आवश्यक होता है।

जिस समय हम कोई काम नही करते उस समय हमारे शरीर को इन पदार्थो को बाहर निकलने का अवसर मिलता है। इसलिए यह आवश्यक है कि हमारी दिनचर्या का कुछ समय ऐसा भी हो जब हम काम न करें।

रक्त ही इन विषैले द्रव्यों को उन अंगो से निकालता है। रक्त जब थकी हुई मांसपेशियों में पहुँचता है, तो यहाँ से इन विषैले पदार्थो को ले लेता है। विषैले पदार्थ को लिए हुए यही रक्त जब विसर्जन के अंगो में (जैसे किडनी और लीवर में) पहुँचता है, तो वहाँ ये पदार्थ रक्त से अलग कर लिए जाते हे और फिर शरीर से वाहर निकाल दिये जाते हैं।

जिस समय अपने जिन अंगो से हम काम लेते है उन्ही मे विषैले पदार्थ एकत्रित होते है और फलस्वरूप उन्हीं में थकान आती है। यदि हम लगातार अधिक देर तक उन्ही अंगो से काम लेते रहें तो वे थककर इतना निशक्त हो जायेंगे कि उनसे काम ले सकना हमारे लिए असम्भव हो जायगा।

ऐसे समय यह आवश्यक होता है कि हम उस काम के तुरन्त बन्द कर दें और कुछ देर तक उस अंग विशेष को विश्राम करने दे।

यदि ऐसे समय हम इस प्रकार के किसी अन्य काम मे लग जाए, जिसमें उन अंगो से काम लेने की आवश्यकता न पड़े, तो हम थकान अनुभव नहीं करेंगे, और बाद में पूरी शक्ति से उस काम में फिर से लग सकेंगे।


साधारणतः हम कार्यों को दो समूहों मे बाँटते हैं – मानसिक और शारीरिक

प्रायः सभी ने यह अनुभव किया होगा कि पढ़ते पढ़ते थक जाने के बाद जब एक अक्षर और पढ़ना आपको असम्भव लग रहा हो, किन्तु खेलने कूदने मे आपका मन खूब लगता है और आप उसमें बिल्कुल भी थकान अनुभव नहीं करते।

इसके विपरीत जिस समय दौड़ने व खेलने में अथवा अन्य किसी प्रकार के शारीरिक काम से आपका शरीर थककर चूर हो रहा हो आपको आराम से बैठकर या लेटकर पढ़ना बुरा नहीं लगता।

वास्तव मे बात यह है कि पढ़ने लिखने आदि में मानसिक परिश्रम होता है, शरीर को कोई परिश्रम नहीं करना पडता। पढ़ने-लिखने में हमारे नेत्र और मस्तिष्क में ही विषैले द्रव्य एकत्रित होते है और केवल उन्ही के विश्राम की आवश्यकता होती है। खेलने कूदने आदि में शरीर को परिश्रम करना पड़ता है और मस्तिष्क को विश्राम मिल जाता है। अतः खेलते समय मस्तिक के विषैले द्रव्य बाहर निकल जाते है।

इसी प्रकार जब शरीर थका होता है तो उसे ही विश्राम की आवश्यकता होती है, मस्तिष्क को नहीं। इसीलिए शरीर के थके होने पर आराम से बैठकर पढ़ना अच्छा लगता है। इससे शरीर के थके हुए अंगो को विश्राम मिल जाता है और उनकी थकान दूर हो जाती है। अतः शारीरिक काम के बाद मानसिक तथा मानसिक काम के बाद शारीरिक काम करके हम अपनी थकान दूर कर सकते हैं।

इसी नियम के आधार पर स्कूलों मे कठिन विषयों (जैसे गणित) के पश्चात् सरल विषय (जैसे गाना, व्यायाम आदि) सिखलाये जाते है।


पूर्ण विश्राम

काम के प्रकार में अन्तर करके थके हुए अंगो को विश्राम देने के साथ साथ यह भी आवश्ग्क है कि दिन मे कुछ समय हम पूर्ण विश्राम भी ले।

दिन में कुछ देर विश्राम कर लेना स्वास्थ्यप्रद होता है। वास्तव में तो सोते समय ही शरीर को पूर्ण विश्राम मिलता है। इस कारण दिन में आधा घंटा सो लेना थकान दूर करने के लिए अच्छा है। रात में ६ से ७ घंटे तो अवश्य सोना चाहिए। बच्चों व रोगियों को कुछ अधिक देर तक सोना चाहिए।