आसन करने का योग्य स्थान और समय


शुद्ध वायु का संचार

आसन किसी सुरक्षित स्थान में करना चाहियें, जहां शुद्ध वायु का स्वतन्त्रता से संचार होता हो।

शरीर में एक प्रकार की अग्नि हर समय रहती है, और शरीर का स्वास्थ्य इसी अग्नि पर निर्भर रहता है।

यह अग्नि, साधारण अग्नि के समान ज्वाला युक्त नही दिखाई देती, तो भी अनेक प्रमाणों से हमको पता चलता है कि यह अग्नि शरीर में उपस्थित है।

जीभ के नीचे या बगल में दबाने से थर्मामीटर का पारा ऊपर चढ़ता है, जो यह दर्शाता है कि शरीर में एक विशेष प्रकार की अग्नि है और इसी कारण शरीर गरम मालूम होता है। इसी अग्नि के कम या ज्यादा हो जाने से कई प्रकार की व्याधियां उत्पन्न होने लगती हैं।

अत: आसन करने का स्थान ऐसा होना चाहिये, जहां शुद्ध वायु प्रवाह विशेष हो।

आसन करते समय शुद्ध वायु और सात्विक आहार का यदि ध्यान न रखा जाए तो आसनों से होने वाला स्वास्थ्य लाभ नहीं होगा।

साफ और समतल भूमि

आसन समतल और साफ़ जगह पर ही करना चाहिये।

ऊँची नीची जगह होने से आसन करते समय शरीर का कोई भाग ऊँचा और कोई नीचा हो जाएगा, और इस विषमता के कारण शरीर के अंगों में कम या अधिक रक्त प्रवाह होने के कारण, लाभ के स्थान में हानि की संभावना रहेगी।

बिछाने का आसन न अधिक कठिन होना चाहिये न विशेष मुलायम ही। सामान्यतः मोटे कम्बल की चार तह करके या योगा मैट के ऊपर आसन करना अच्छा है।

आसन करने का समय

प्रातःकाल सुबह जल्दी उठ कर, शौचादि नित्य कर्म से निवृत्त होकर, आसन करना उचित है।

सवेरे उठने के बाद काम करने में जो आलस्य आता है, वह आसन करने पर नहीं रहता, काम करने को मन उत्साहित रहता है, चित्त में प्रसन्नता प्रतीत होती है और लगभग दो घंटे पश्चात् भूख तेज लगती है।

रात्रि में खाया हुआ भोजन प्रातःकाल तक पच जाता है, और शौचादि के बाद शरीर हल्का और पेट खाली हो जाता है। इस कारण भी ऐसी अवस्था में आसनों का अभ्यास सुलभ और आनन्दप्रद मालूम होता है।

भरे हुए पेट में आसन करने से कष्ट मालूम होता है। और पेट अर्थात स्टमक से आधा पचा भोजन व्यायाम के कारण आंतो में आ जाता है, और इससे पेट में दर्द हो जाने की आशंका रहती है।

इसलिए आसन खाली पेट ही करने चाहिये। कम से कम भोजन के तीन घंटे बाद, आसन किये जाने चाहियें।

यदि ठंड के मौसम में सुबह का समय कष्टकर प्रतीत हो तो संध्या समय भी उत्तम है।

एक बात का ध्यान रहे कि आसन करते समय टाइट कपड़े ना पहने, जिससे
शरीर में रक्त प्रवाह में किसी प्रकार की रुकावट न हो सकेगी।

आसन करने के लगभग दो घन्टे बाद भोजन करना चाहिये।

यदि प्रात: और संध्या दोनों समय आसन किये जावें तो बहुत ही अच्छा है।

आसनों के अभ्यास में शीघ्रता न करके उनको धीरे धीरे ही बढाना चाहिये।