वायु क्यों आवश्यक है?
सभी प्राणियों के लिए वायु एक अति आवश्यक वस्तु है। वायु हमारे फेफड़ों के भीतर बार-बार इसलिए जाती रहती है कि फेफड़ों में आए हुए रक्त को शुद्ध करें।
हमारे शरीर की मशीनरी हरदम चलती रहती है। इस क्रिया में अनेक प्रकार के मल शरीर में उत्पन्न हो जाते हैं। उनमें विशेष एक प्रकार का वायु है, जिसे कार्बन डाइऑक्साइड गैस कहते हैं। यह बहुत विषैली वायु होती है।
कार्बन डाइऑक्साइड संपूर्ण शरीर से इकट्ठा हो हो कर रक्त के जरिये फेफड़ों में आता है। इसे साफ करने के लिए बाहर की शुद्ध वायु अपना गुणकारी वायु, ऑक्सीजन, फेफड़ों के अंदर छोड़ जाती है, और कार्बन डाइऑक्साइड नामक विषैली गैस को बाहर निकाल ले जाती है।
शुद्ध वायु और ऑक्सीजन
वायु जितनी अधिक निर्मल होती है, उतना ही उस में ऑक्सीजन का भाग अधिक रहता है। इसलिए मनुष्य को स्वच्छ वायु की अति आवश्यकता है।
धुआं, अंधेरा और तंग कोठियों में वायु खराब होती है। रात को वृक्षों के नीचे भी वायु खराब होती है, क्योंकि तब उनके आसपास कार्बन डाइऑक्साइड गैस बहुत मात्रा में होती है।
जिन गहरे कुओं से पानी नहीं खींचा जाता, उन कुओं में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है और ऐसे कुओं में उतरने वालों का दम गैस से घुट जाता है। दुर्गन्धित स्थानों की वायु भी दूषित होती है।
आटा और रूई की मशीनों के आसपास हवा में छोटे-छोटे कण उड़ते रहते हैं, भूसा की उलट-पुलट तथा आंधी और हवा के समय मिट्टी उड़ती फिरती है। इनसे बचना चाहिए।
खुले स्थानों में जहां वायु का आवागमन पर्याप्त हो ऐसे स्थानों में रहना स्वास्थ्य के लिए हितकारी है। मैदान, बगीचा, नदी, समुद्र तट आदि स्थानों पर सवेरे के समय घूमना सेहत के लिए अच्छा रहता है।
शुद्ध वायु के सेवन से शक्ति और चुस्ती फुर्ती बढ़ती है और भूख खुलकर लगती है।
लम्बी गहरी श्वास क्यों?
जो लोग व्यायाम अथवा परिश्रम नहीं करते उनके फेफड़ों में वायु पूरे तौर पर नहीं आती जाती है, क्योंकि लंबी गहरी सांस ही फेफड़ों के सभी हिस्सों में पहुंच पाती है और स्वास्थ्य का कारण बनती है।
साधारण सांस से तो फेफड़ों के सिर्फ तीन चौथाई हिस्से तक हवा पहुंच पाती है, और बाकी के चौथाई हिस्से को शुद्ध हवा नहीं मिल पाती है।
जो लोग पीठ को सीधा रखकर बैठने और चलने के बजाय, आगे को झुके हुए कुबड़ों के समान बिल्कुल ढीले बैठते हैं और चलते हैं, उनके तो सिर्फ आधे फेफड़ों तक ही शुद्ध हवा पहुंच पाती है। ऐसे लोगों की आयु भी कम हो जाती है।
प्राणायाम में गहरी श्वास
इसलिए प्राणायाम में लंबे और गहरे श्वास के स्वास्थ्य वर्धक और काफी समय तक रहने वाले सद्गुणों की चर्चा है। प्राणायाम की क्रिया है भी बड़ी लाभदायक।
प्राणायाम के बाद शरीर बहुत हल्का हो जाता है, ऐसा मालूम होता है कि मानो शरीर, मन और मस्तिष्क के कोने-कोने से थकावट दूर हो गई हो और मलिन धब्बे साफ हो गए हैं।
इस विद्या को जानने वालों ने इस क्रिया की बारीकियों का इस प्रकार सविस्तर वर्णन किया है कि कई लोगों को यह बहुत कठिन और पेचदार पहेली जान पड़ता है।
गहरी श्वास का सरल व्यायाम
साधारण श्वास का व्यायाम अति सरल और सादी सी बात है।
आलथी-पालथी मारकर बैठ जाए और पीठ को सीधा रखे, या सीधे तन कर खड़े हो जाए। धीरे-धीरे सांस अंदर लेना आरंभ करें यहां तक की छाती फूल जाए और अधिक सांस अंदर लेना असंभव हो जाए। तब जितनी देर तक सांस को भीतर ही भीतर वहीं का वहीं रोक कर रख सके रोके, और फिर धीरे-धीरे सांस को बाहर निकाले।
फिर जब अधिक सांस बाहर निकालना असंभव हो जाए, वहीं रुक जाए और फिर धीरे-धीरे श्वास को भीतर खींचना आरंभ करें।
योग सम्बन्धी प्राणायाम, योगी लोगों से या प्राणायाम के जानकार लोगों से ही सीखा जा सकता है।
श्वास के व्यायाम के लिए स्थान और समय
इस प्रकार लंबी सांस लेना और छोड़ना, सुबह शाम या दिन में जब चाहे कर सकते है। खाली पेट और साफ़ सुथरे स्थान पर, और खुली हवा में यह करना चाहिए।
बड़े शहरों में बाहर बाग़ में जाकर, जल के किनारे, खुले स्थान पर अथवा छत पर बैठकर सूर्योदय के समय प्राणायाम करना बहुत गुणकारी है।