बीमारी से बचने का पहला मंत्र – श्रम और व्यायाम


Physical Activity and Exercise to Prevent Disease

मेहनत या श्रम जिंदगी को सुखी बनाते हैं, और आलस्य सब दुखों की जड़ है। आलस्य, व्यायाम का अभाव और कम मेहनत के कारण ही ज्यादातर बीमारियाँ होती हैं।

मेहनत, व्यायाम, परिश्रम मनुष्य के स्वास्थ्य के प्राकृतिक साधन है। जब मनुष्य स्वाभाविक स्थिति में रहता है, तब वह उदर पोषण और आत्मरक्षा के लिए जितना शारीरिक परिश्रम करता है, उतना उसके शरीर की स्थिति को ठीक रखने के लिए काफी है। परंतु आजकल आधुनिक जीवन शैली के कारण श्रम और व्यायाम का बहुत अभाव है।

खुली हवा में व्यायाम के अभाव के कारण शरीर कमजोर होता जाता है और बीमारियों का घर बनता जाता हैं।

अधिकांश लोग अपनी जिंदगी बंद कमरों के अंदर काम करने में बिताते हैं। घर में या बंद कमरों में काम करने में शारीरिक श्रम तो थोड़ा बहुत अवश्य करना पड़ता है, किंतु बाहर ताजी और साफ हवा में व्यायाम और श्रम करने से जो लाभ होता है, उसके साथ इसकी तुलना नहीं की जा सकती।

शारीरिक श्रम का हमारे स्वास्थ्य और मन पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है। जो श्रम करता है, वह स्वस्थ रहता है, और जो स्वस्थ रहता है वही मनुष्य अपना काम ठीक तरीके से कर पाता है।

शारीरिक और मानसिक श्रम

परिश्रम दो प्रकार के होते है – शारीरिक और मानसिक।

शारीरिक या मानसिक परिश्रम को बदलते रहना अधिक उपयोगी है। एक ही काम में लगातार जुटे रहने से मनुष्य जल्दी थक जाता है। किंतु बारी-बारी से काम बदलते रहने से उतना शीघ्र नहीं थकता। मानसिक परिश्रम से थक जाने पर शारीरिक परिश्रम करना चाहिए अथवा विश्राम करना चाहिए।

मस्तिष्क शरीर का मुख्य अंग है। रक्त जितना ही शुद्ध होता है उतना ही अधिक पोषण मस्तिष्क को प्राप्त होता है। इसलिए मानसिक श्रम करने वालों को कमरे की खुली हुई खिड़कियों से आती हुई ताजी हवा में सांस लेना चाहिए। खुली जगह में मानसिक श्रम करना इससे अधिक उपयोगी है।

मानसिक परिश्रम करने वालों के लिए खुली हवा में व्यायाम करना, बागीचे में टहलना, शुद्ध और हल्का भोजन करना, शराब और तंबाकू आदि से पूर्ण परहेज करना चाहिए। इससे रक्त शुद्ध रहता है, और मानसिक शक्तियों का विकास होता है।

श्रम करने का मुख्य नियम है की थकावट ना मालूम हो।

शक्तिशाली और सबल मनुष्य

पुराने जमाने में शारीरिक शक्ति और सुडौलपन की सबसे अधिक कदर थी। ऊंचे ऊंचे पदों पर काम करने के लिए प्रायः सबल मनुष्य चुने जाते थे। रोम के एक बादशाह ने एक बार यात्रा में किसी हृष्टपुष्ट आदमी को देखा। उसने उसकी शक्ति और स्वास्थ्य को देखकर कर उसे सेनाध्यक्ष बना दिया। बाद में वही रोम का बादशाह हुआ।

उस समय युद्ध में उसी राजा की जीत होती थी, जिसके सैनिक सबल होते थे। विजय पाना सैनिकों की शक्ति और साहस पर अवलंबित था। आज भी सेना में फिजिकल ड्रिल का महत्व काफी ज्यादा है। मेहनत से बढ़े हुए फौजी सिपाहियों की बराबरी सिविलियन नहीं कर सकते हैं।

श्रम के अभाव में शरीर के अंगो पर क्या असर होता है?

जो यंत्र व्यवहार में नहीं लाया जाता उस पर जंग चढ़ जाता है। इस प्रकार व्यायाम अथवा यूं कहिए कि शारीरिक परिश्रम न करने से शरीर रूपी यंत्र पर भी जंग अर्थात बीमारियां लग जाती है।

शरीर का जो अंग बिल्कुल काम में नहीं लाया जाता वह सर्वथा बेकार हो जाता है। शरीर के अंग परिश्रम के अनुसार पुष्ट होते है यह प्राकृतिक नियम है।

मनुष्य के लिए शारीरिक परिश्रम बहुत ही आवश्यक है। शरीर का वृद्धि और विकास, व्यायाम और शारीरिक श्रम पर निर्भर करते है।

शारीरिक परिश्रम या व्यायाम ना करने से मस्तिष्क, ह्रदय, फेफड़ें, तथा पाचन तंत्र के अंग निर्बल होते जाते हैं।

मस्तिष्क की दुर्बलता के कारण अध्ययन, स्मरण, चिंता, कल्पना, विचार आदि मस्तिष्क के कार्य सुचारु रुप से संपन्न नहीं हो पाते हैं।

ह्रदय और फेफड़ों के निर्बल होने से शरीर में रक्त का संचार सुचारु रुप से नहीं हो पाता है।

श्रम और व्यायाम के अभाव में पाचन तंत्र कमजोर हो जाता हैं, जिसके कारण भोजन ठीक तरह से नहीं पचता है। जिसकी वजह से भोजन से जितना पोषक तत्व शरीर को मिलना चाहिए, वह नहीं मिल पाता हैं और थकान और कमजोरी जैसी समस्या आने लगती है।

फेफड़े और पाचन तंत्र निर्बल होने के कारण भीतर पैदा हुए मल को शरीर पूरी तरह से बाहर निकाल नहीं पाता है, जिससे रक्त रक्त दूषित होता जाता है और यह दूषित रक्त कई बीमारियों का कारण बन सकता है।

व्यायाम द्वारा शरीर में हल्कापन आता है कार्य करने की शक्ति स्थिरता जठराग्नि की वृद्धि होती है और शरीर के विविध दोष नष्ट होते हैं

आजकल कई लोग शारीरिक परिश्रम को टाल देते हैं या कुछ लोग उसे निंदनीय समझते हैं। वे समझते हैं कि उन्होंने शारीरिक परिश्रम करने के लिए जन्म नहीं लिया है, बल्कि खाने पीने, सोने के लिए और आमोद-प्रमोद के लिए ही उनका जन्म हुआ है। ऐसे लोग शारीरिक परिश्रम के परिणामों से या तो अनजान होते हैं या उसकी ओर लक्ष्य नहीं देते। ऐसे व्यक्तियों का शरीर धीरे-धीरे कमजोर होता जाता है और बीमारियां विकसित होना शुरू हो जाती है।

इसलिए स्वस्थ रहने के लिए परिश्रम से प्रेम रखना चाहिए आलस्य से नहीं।

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