मस्तिष्क का महत्व और सेहत


सिर

सिर यथार्थ में मस्तिष्क, आंख, कान, नाक, मुंह, जीभ, दांत आदि के समूह का नाम है, जो मनुष्य की खोपड़ी के भीतर विशेष प्रकार से जुड़े हुए हैं।

मस्तिष्क

यह एक नर्म सा अंग है, और खोपड़ी की हड्डी के अंदर सुरक्षित रीति से रखा है।

मस्तिष्क का काम आंख, कान, नाक, हाथ-पैर आदि अंगों को भिन्न-भिन्न कामों की आज्ञा देना है। देखीं, पढ़ी, सुनी, सूंघी, चखी और समझी बातों को याद रखना तथा नई पुरानी बातों को सोचना है।

दिमाग एक पुस्तकालय

दिमाग की उपमा एक पुस्तकालय से भली प्रकार दी जा सकती है।

पुस्तकालय में किसी पुस्तक को खोजने और पुस्तक में से किसी विषय को ढूंढ निकालने में कुछ समय लगता है। लेकिन मस्तिष्क को एक पल में बरसो की बातें याद आ जाती है।

दुख-दर्द, कष्ट-क्लेश, सर्दी-गर्मी, मिठास-खठास, आकार-प्रकार और गंध आदि का अनुभव मस्तिष्क को ही होता है।

तन्त्रिका तन्त्र – नाडियां

मस्तिष्क से लेकर शरीर के समस्त अंगों तक बिजली के तार लगे रहते हैं, जो मस्तिष्क से चलकर रीढ़ की हड्डी में आते हैं, और फिर वहां से सारे शरीर में जाल की तरह फैल जाते हैं। इनको नाडियां कहते हैं।

इनको जो भी अनुभव होता है, उसे वे सांवेदनिक नाड़ी (अर्थात सेंसरी नर्व – sensory nerves) द्वारा तत्काल मस्तिष्क को भेज देती है।

तब मस्तिष्क आवश्यकतानुसार केंद्र से निकली गति-संबंधी तारों (अर्थात मोटर नर्व – motor nerves) के द्वारा हाथ को छूने के लिए, आंख को देखने के लिए, जीभ को बोलने के लिए अथवा पैरों को चलने के लिए आदेश देता है। इस हेतु से इस सारे जाल का नाम तन्त्रिका तन्त्र (Nervous System) हैं।

मस्तिष्क के दो भाग

मस्तिष्क के दो भाग है – अगला भाग सोचने समझने और अनुभव करने के लिए है। पिछला भाग शरीर के शेष भागों को अधिकार में रखता है।

यदि मस्तिष्क के अगले भाग में चोट लग जाए तो मनुष्य सोचने समझने से रहित अथवा पागल हो जाता है। यदि मस्तिष्क के पिछले भाग का वह स्थान चोट खा जाए जो नेत्रों पर अपना अधिकार रखता है, तो आंखों के रहते हुए भी मनुष्य देख नहीं सकता।

शराब के नशे में, मनुष्य के हाथ पैरों पर अधिकार रखने वाला मस्तिष्क का भाग, बेहोश हो जाता है, इसलिए शराबी एक कदम भी सीधा नहीं चल सकता।

सारांश यह है कि, संपूर्ण अंग मस्तिष्क के आदेश पर काम करते हैं। मस्तिष्क के बिना इनका होना ना होना बराबर है।

हमारा शरीर मस्तिष्क के बिना बेकार है। जैसे जान है तो जहान है, उसी प्रकार मस्तिष्क है तो शरीर और प्राण है, अन्यथा उनका होना ना होना एक समान है। इसलिए मस्तिष्क को सुरक्षित रखने का ध्यान हमें सबसे अधिक रखना चाहिए।

तेज और सुस्त मस्तिष्क

मस्तिष्क हमारे उत्पन्न होने के साथ ही हमें मिल जाता है। अनेकों का मस्तिष्क जन्म से ही बहुत तेज होता है, और अनेकों का बहुत सुस्त।

लेकिन इसे इस बात का प्रमाण नहीं समझना चाहिए, कि अब आपके हाथ में कुछ नहीं है। और मस्तिष्क की सुरक्षा और इसे तेज़ करना आपके यत्नों की सीमा से परे है।

यदि मस्तिष्क की कमी जन्मजात है, तो यह भी जन्मजात है कि कोई धनी और कोई निर्बल घर में जन्म लेता है।

किंतु सदा से ऐसा नहीं होता आया है कि अपने प्रयत्नों से वीर पुरुषों ने निर्बल घरों को भारी महलों और भवनों में बदल दिया। इसी तरह दुराचारी और अयोग्य धनवानों ने अपने महलों और अटारीओं को निर्धन घरों और झोपड़ियों में बदल दिया।

हो सकता है कि, जन्म से ही एक व्यक्ति मंदबुद्धि उत्पन्न हुआ हो, परंतु उसके अधिकार में यह बात अवश्य है कि वह चाहे तो नियमित जीवन द्वारा बुद्धिमानों को परास्त कर दे, अथवा अपने विषय विकार, दुष्कर्म और भोजन आदि से मस्तिष्क को भूसा बना डाले।

3 वस्तुओं का प्रभाव

मस्तिष्क पर 3 वस्तुओं का विशेष प्रभाव पड़ता है – एक भोजन, दुसरा विषय-भोग और तीसरा क्रोध और शोक।

जो लोग अपने मस्तिष्क में किसी प्रकार की दुर्बलता पाते हैं, अथवा किसी प्रकार का विकार अनुभव करते हैं, वे अधिकतर यही शिकायत करते हैं कि उन्होंने सीमा से अधिक मानसिक परिश्रम या दिमागी काम किया है, इसलिए उनका मस्तिष्क जवाब दे बैठा है।

काम की अधिकता से मस्तिष्क कभी खराब नहीं होता। जो ऊपर लिखे तीन मुख्य कारण है उनकी और इनका ध्यान ही नहीं जाता।

इसलिए महत्वपूर्ण है कि विषय भोग से कुछ समय के लिए परहेज कर ले।

मस्तिष्क की सेहत

गरिष्ठ पकवान, तले हुए पदार्थ, मांस, मिर्च मसाले, मादक पदार्थों का सेवन बंद कर दे। यदि मंदाग्नि हो तो घी और मलाई कम खाएं।

रोटी, चावल, पतली खिचड़ी, दलिया, दूध, दही, छाछ, ताजे फल और सादे पानी को अपना भोजन बनाए।

ज्यादा नमकीन खट्टी मीठी चीजों को एक साथ खा लेना अत्यंत हानिकारक है। एक समय में एक दो वस्तुओं से अधिक ना खाए।

खूब चबा चबाकर खाएं और थोड़ी भूख के रहते खाना बंद कर दे।

बर्फ और उस से बनी वस्तुएं बड़ी हानिकारक है।

हल्की चाय का एक कप तक ले सकते हैं।

मन को शांत रखे

मस्तिष्क को क्रोध और शोक से बचाए। यह काम बिगड़ गया, यह बच्चा बिगड़ गया, बीवी में यह बुराई और नौकर में यह खराबी – यह सब चिंताएं छोड़ दे। आप सारे संसार के ठेकेदार बन कर नहीं आए हैं। शांति और संतोष से जितना संभल सकता है, संभाले। बाकी के लिए औरों को दोष लगाने के बदले उनके दृष्टिकोण का आदर करना सीखें।

प्रत्येक अवस्था में प्रसन्न रहने का अभ्यास बढ़ाएं। मस्तिष्क पर लगा हुआ सारा भार उतार फेंके।

बादाम गाय का दूध और मक्खन के प्रयोग से मस्तिष्क में तरावट आती है। हल्का और शीघ्र पचने वाला भोजन मस्तिष्क को प्रकाशित करता है।

मांस, तली हुई चीजें, भैंस का दूध मस्तिष्क को भारी बना देता है।

ऊंची, गहरी और पेचीदा बातें हल के पेट से भलीभांति सोची जा सकती है।

नाक में गाय का शुद्ध घी नित्य सवेरे डाला जाए तो उसका प्रभाव मस्तिष्क पर बहुत अच्छा पड़ता है।

इन बातों से, 2 से 3 महीने में आप अपने आप में बदलाव महसूस करेंगे।