पिछले लेख में हमने देखा कि व्यायाम से मांसपेशियां तंदुरुस्त हो जाती है और शरीर के जोड़ और हड्डियां भी मजबूत हो जाते हैं। लेकिन क्या व्यायाम से हृदय और फेफड़ों को भी फायदा पहुंचता है?
व्यायाम का ह्रदय और फेफड़ों पर क्या असर होता है?
मांसपेशियों से परिश्रम लेने पर ह्रदय और फेफड़ों का काम बढ़ जाता हैं। दौड़ने से दिल को ज्यादा काम करना पड़ता है और फेफड़ों को भी अधिक काम करना पड़ता है।
फेफड़ों को श्वास के साथ अधिक ऑक्सीजन खींचना पड़ता है, इसलिए सांस अधिक गहरी हो जाती है। इस प्रकार फेफड़ों को दुगने से भी अधिक मेहनत पड़ती है। फेफड़ों का काम अधिक बढ़ जाने से शारीरिक स्वास्थ्य का आश्चर्यप्रद विकास होता है।
ह्रदय, शुद्ध रक्त और शरीर
ह्रदय केंद्र एक ऐसा नल है, जो समस्त शरीर में नवजीवन देने वाला रक्त पहुंचाता है। जिस समय ह्रदय बहुत तेजी और मेहनत के साथ काम करता है, उस समय शरीर के प्रत्येक अंग और इंद्रिय में अधिक रक्त दौड़ता है। इससे शरीर की कोशिकाओं को खूब पौष्टिक पदार्थ मिलता है।
कसरत के समय शरीर में शुद्ध रक्त के तेजी से दौड़ने से अनावश्यक और हानिकारक पदार्थ हटाए जाते हैं, उन्हें बाहर निकाल दिया जाता हैं। इसलिए शरीर मल रहित हो जाता है।
फेफड़ों के अधिक काम करने से और गहरे श्वास लेने के कारण, शरीर के भीतर ऑक्सीजन अधिक प्रमाण में पहुंचता है। और वह रक्त के लाल कणों द्वारा इंद्रियों में पहुंच जाता है, और उनको पुष्ट और तंदुरुस्त बनाता हैं।
इस प्रकार शरीर की प्रत्येक इंद्रिय में नवजीवन का संचार होता है। प्रत्येक इंद्रिय फुर्तीली बन जाती है। शरीर का वृद्धि विकास होता है। शारीरिक यंत्र अधिक शीघ्रता के साथ चलता और अधिक प्रभाव के साथ कार्य करता है।
शरीर के वृद्धि विकास से जो आनंद मिलता है, वह सुस्त और निरुत्साही बनने से कदापि नहीं मिल सकता।
श्वास हमेशा नाक से क्यों लेना चाहिए?
श्वास क्रिया का स्वाभाविक पथ नासिका अर्थात नाक से है। मुंह से श्वास लेना किसी भी तरह उचित नहीं।
नासिका के अंदर के भाग में छोटे-छोटे बाल होते हैं। श्वास की वायु में जो धूल में सूक्ष्म कण तथा अन्य दूषित पदार्थ मिले होते हैं, वे इन बालों में रुक जाते हैं। श्वास वायु के साथ फेफड़ों में प्रवेश नहीं कर पाते।
इसलिए श्वास हमेशा नाक से ही लेना चाहिए। क्योंकि नासिका के मार्ग में यह छोटे-छोटे बाल धूल के कणों को शरीर के फेफड़ों में पहुंचने नहीं देते हैं।
मुँह से श्वास लेने पर क्या होगा?
मुंह से सांस लेने में वायु में मिले हुए दूषित पदार्थों के कण, फेफड़ों में पहुंचकर अनिष्ट के कारण बनते हैं।
फेफड़ों में पहुंचने वाली हवा का तापमान
बाहर की ठंडी हवा भी जब नाक के रास्ते से गुजरती है, तब वह गर्म होकर अर्थात उसका तापमान शरीर के तापमान के बराबर हो जाता है और फिर फेफड़ों में पहुंचती है।
किंतु मुंह से सांस लेने में ठंडी हवा, खासकर शीत ऋतु में, उसी अवस्था में फेफड़ों में पहुंचती है। इससे फेफड़ों में कई प्रकार के रोग होने की संभावना रहती है।
दम या सांस की अच्छी स्थिरता के लिए हृष्ट पुष्ट दिल और बड़े एवं शक्ति संपन्न फेफड़े जरूरी है। वह मनुष्य जिसका दिल और फेफड़े कमजोर होते हैं, अधिक शारीरिक परिश्रम नहीं कर सकता। वह थोड़े परिश्रम से ही थक जाता है और उसका दम फूल उठता है।
ह्रदय एक मांसपेशी है। मांसपेशियों की मदद से फेफड़े सांस भीतर खींचते और बाहर निकालते हैं। यह मांसपेशियां छाती में इस तरह रखी गई है कि उनके द्वारा फेफड़े पंप की तरह हवा खींचते और बाहर निकालते हैं।
शारीरिक परिश्रम या व्यायाम करने से ह्रदय पुष्ट होता है। और भिन्न-भिन्न अंगों की मांसपेशियों की तरह उसकी भी ताकत बढ़ती है। व्यायाम विशेष से छाती की मांसपेशियों बढ़ती है। छाती मांसपेशियों के बढ़ने से आप ही आप बढ़ जाती है। उसमें अधिक सांस ग्रहण करने की ताकत आ जाती है।
व्यायाम धीरे धीरे बढाए
हृदय और फेफड़ों की वृद्धि बल के लिए समय लगता है। इसलिए व्यायाम क्रम क्रम से बढ़ाना उचित है।
क्रम क्रम से व्यायाम बढ़ाने से ह्रदय को अधिक शीघ्रता के साथ शरीर में शुद्ध रक्त बढ़ाने का और फेफड़ों को अधिक वायु श्वास लेने के साथ खींचने का अभ्यास होता है।
क्रमिक अभ्यास से छाती की मांसपेशियां बढ़ने लगती है। इससे ह्रदय और फेफड़े सफल होने लगते हैं।
आलसी मनुष्य का दुर्बल ह्रदय
वह मनुष्य जिसे व्यायाम या परिश्रम करने की आदत नहीं है, यदि थोड़ा भी व्यायाम करता है, तो उसे ह्रदय अधिक धड़कता हुआ मालूम होता है। उसका दम शुरुआत में ही फूल उठता है।
सक्रिय मनुष्य का हृष्ट पुष्ट दिल
किंतु नियमित रूप से व्यायाम करने से दिल इतना तेज धड़कता नहीं मालूम होता, और ना इतना जल्दी दम फुल उठता है। क्योंकि क्रम बद्ध और नियमित व्यायाम से दिल और फेफड़ों में अधिक शक्ति आ जाती है।
दिल की परीक्षा कैसे की जा सकती है?
जिस मनुष्य को अधिक परिश्रम या व्यायाम करने की आदत ना हो, और जो शांत बैठा हो, उसकी नाड़ी देखो, और उसकी गति की गणना करो।
बाद में उसे सीढ़ियों पर दो-तीन बार जल्दी-जल्दी चढ़ने उतरने को कहो।
इसके पश्चात फिर उसकी नाड़ी पर हाथ रखो, और नाड़ी की गति की गणना करो।
अब उसकी नाड़ी गति की संख्या प्रति मिनट 30 या 40 से पहले की अपेक्षा अधिक होगी।
इसी प्रकार उस मनुष्य की नाड़ी गति की गणना करो, जिसे व्यायाम करने का अच्छा अभ्यास है।
और बाद में उसको भी सीढ़ियों पर जल्दी जल्दी दो तीन बार चढ़ने उतरने को कहो।
बाद में फिर उसकी नाड़ी की गणना करो।
उसकी नाड़ी गति की संख्या पहले की अपेक्षा 10 या 12 से अधिक ना होगी।
इस साधारण रीतिसे प्रत्येक मनुष्य अपने ह्रदय की ताकत की जांच कर सकता है।
धीरे-धीरे व्यायाम बढ़ाने से ह्रदय की ताकत बढ़ जाती है, और फिर शारीरिक परिश्रम करने पर नाड़ी की गति संख्या उतनी नहीं बढ़ती। शारीरिक परिश्रम से शरीर अपने वश में रहता है।