श्वसन तंत्र – श्वसन संस्थान – श्वासोच्छवास संस्थान
श्वसन तंत्र के इस लेख में हम देखेंगे –
- श्वास प्रश्वास की क्रिया शरीर के लिए क्यों जरूरी है?
- श्वासोच्छ्वास से रक्त की सफाई कैसे होती है?
- श्वास की क्रिया में भाग लेने वाले अंग कौन से हैं?
- श्वास और प्रश्वास की क्रिया कैसे होती हैं? (अर्थात कौन से अंगों में किस प्रकार गति होती हैं?)
- मनुष्य एक मिनट में कितनी बार श्वास लेता है?
- मुख से श्वास लेना क्यों हानीकर है?
- स्वास्थ्य और श्वसन संस्थान का क्या सम्बन्ध हैं?
- कसरत के समय श्वास क्यों तेज हो जाती है?
हवा – जीवन की सबसे आवश्यक वस्तु
- हमारे जीवन के लिए,
- वायु सबसे आवश्यक वस्तु है।
- भोजन व जल हमारे जीवन के लिए,
- अत्यंत आवश्यक है,
- परंतु वायु की महत्ता इन सबसे अधिक है।
- बिना भोजन व पानी के,
- मनुष्य कुछ समय तक जीवित रह सकता है,
- किंतु बिना वायु कुछ क्षण भी जीवित रहना असंभव है।
श्वास प्रश्वास क्या है?
- वायु हमारे शरीर में,
- श्वास के साथ अंदर जाती है।
- प्रश्वास के समय,
- वायु फिर बाहर निकल आती है।
- इस प्रकार हमारे शरीर में,
- वायु के अंदर आने, और
- बाहर निकलने की क्रिया,
- बराबर होती रहती है।
- इस क्रिया को,
- श्वासोच्छ्वास – श्वास प्रश्वास क्रिया कहते हैं।
श्वास प्रश्वास से रक्त की सफाई कैसे होती है?
- रक्त शरीर के लिए जरूरी है, और
- रक्त की सफाई बहुत कुछ,
- साँस लेने और फेंकने पर निर्भर है।
- अन्दर जाने वाली साँस का काम है,
- फेफड़ों में साफ हवा पहुँचाना।
- उससे जो ऑक्सीजन मिलती है,
- वह रक्त को शुद्ध करती है।
- इसी तरह बाहर जाने वाली साँस का काम है,
- रक्त के अन्दर की हानिकारक गैस,
- कार्बन डाइऑक्साइड को,
- बाहर निकाल फेंकना।
- हवा कई गैसों के सम्मिश्रण से बनती है।
श्वास से अंदर आती हुई हवा में कितना ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड रहता है?
- शुद्ध हवा, जो हम श्वास से शरीर में लेते है,
- उसमें लगभग –
- 78 फीसदी नाइट्रोजन,
- 21 फीसदी ऑक्सीजन और बाकी
- 1 फीसदी दूसरी गैसेस
- जैसे अर्गोन, कार्बन डाइऑक्साइड आदि रहती है।
- यह तो हुई शुद्ध हवा की बात,
- पर अब फेफड़ों मे पहुँचे हुए रक्त को ऑक्सीजन देकर और
- उससे विकार लेकर जब हवा प्रश्वास के समय बाहर आती है,
- तो उसमें बहुत से परिवर्तन हो जाते हैं।
- इस तरह साँस से अंदर आती हुई हवा और
- बाहर जाती हवा में बहुत भेद रहता है।
प्रश्वास से बाहर जाती हुई हवा में कितना ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड रहता है?
- बाहर निकाली हवा में
- ऑक्सीजन की मात्रा सिर्फ
- 16-17 फीसदी रह जाती है, और
- अंदर आती सांस में यह 21 फीसदी थी।
- कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा लगभग
- 4 फीसदी बढ़ जाती है,
- अंदर आती सांस में यह 1 फीसदी से कम थी।
- इस प्रकार श्वास से हम रक्त को ऑक्सीजन देते है, और
- प्रश्वास के समय रक्त का कार्बन डाइऑक्साइड बाहर फेंकते है, और
- रक्त को शुद्ध करते है।
- शरीर में और भी दुसरे हानिकारक पदार्थ तैयार होते है,
- जिन्हे बाहर निकालने का काम,
- कुछ अन्य अंग करते है,
- जैसे गुर्दे, लिवर और त्वचा।
- पेशाब के साथ विकार निकालने का काम
- गुर्दो (kidneys, वृक्क) से और
- पसीने के साथ विकार निकालने का काम
- त्वचा (skin) के सहारे होता है।
श्वास प्रश्वास की क्रिया शरीर के लिए क्यों जरूरी है?
हमारा शरीर छोटी छोटी कोशिकाओं (cell) से बना हैं। इन कोशिकाओं को जीवित और स्वस्थ रहने के लिए, ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है।
शरीर की कोशिकायें निरंतर कार्य करती रहती है, और इन सेलों में कई तरह की रासायनिक क्रियाएँ होती है। इन क्रियाओं से बहुत से पदार्थ शरीर के अन्दर बनते है, जो हानिकारक होते है, और जिनका शरीर के बाहर निकल जाना ही अच्छा हैं।
कार्बन डाइऑक्साइड एक ऐसा ही हानिकारक पदार्थ (gas, गैस ) है, जो शरीर में बहुतायत से बनता है।
साँस की क्रिया इसीलिए होती रहती है कि, शरीर मे बराबर ही ऑक्सीजन पहुँचा करे, और कार्बन डाइऑक्साइड शरीर के बाहर निकल जाया करे।
श्वास की क्रिया में भाग लेने वाले अंग कौन से हैं?
साँस की क्रिया में भाग लेने वाले अंग यह है – नाक, श्वासनली, वायु प्रणाली और फेफड़े।
नाक (Nose)
नाक के दोनों छिद्रों से होती हुई वायु नासा-गुहा (nasal cavity, नासिकानली) में पहुँचती है। नासिकानली का भीतरी सिरा ग्रसनी अर्थात फैरिंक्स में खुलता है।
फैरिंक्स (Pharynx, ग्रसनी)
वायु नासा-गुहा से ग्रसनी में आती है।
लैरिंग्स (Larynx, स्वरयंत्र)
गले से हवा लैरिंग्स में आती है। श्वासनली के ऊपरी हिस्सा, जो गले के पास रहता है, लैरिंग्स (larynx) कहलाता है। जब हम बोलते है तो आवाज़ यहीं से आती है, इसलिए इसे स्वरयंत्र कहा जाता है।
ट्रेकिआ (Trachea, श्वासनली)
वायु-नली, श्वासप्रणाल, टेंटुआ
श्वासनली छाती की हड्डी के पीछे और भोजन नली (esophagus) के आगे स्थित रहती है। यह लगभग साढे 4 इंच लंबी एक नली है। इसका ऊपरी सिरा गले के पास है। यहां पर नाक से आई हुई वायु इसमें प्रवेश करती है।
भोजन नली श्वासनली के पीछे है। इसलिए भोजन मुख से भोजन नली में जाते समय श्वासनली के ऊपर से होकर जाता है।
भोजन श्वासनली में चला ना जाए इस हेतु श्वासनली के ऊपर के सिरे पर पर एक पर्दा लगा रहता है, जो प्रत्येक बार भोजन के निकट आने पर श्वासनली को ढक देता है, और भोजन के भीतर चले जाने पर खुलकर वायु के प्रवेश के लिए मार्ग बना देता है।
इसलिए जल्दी-जल्दी भोजन करने से, या भोजन करते समय अधिक बोलने या हँसने से, भोजन के कण श्वासनली में चले जाते हैं। ऐसा होने पर तुरंत खाँसी आती है, जिससे भोजन के कण श्वासनली के बाहर निकल आते हैं।
ट्रेकिआ छल्लेदार गोल मांसपेशियों से बना है। इसका भीतरी पर्त एक झिल्ली से बना है।
नीचे के सिरे पर ट्रेकिआ दो शाखाओं में विभाजित हो जाता है। ये शाखायें वायु प्रणालीयाँ (bronchial tubes) कहलाती है। प्रत्येक वायु प्रणाली अपनी ओर के फेफड़े में जाती है।
फेफड़ों में पहुँचकर दोनों वायु प्रणालियाँ अनेक शाखाओं प्रशाखाओं में विभाजित होती हुई, अंत में नन्हें-नन्हें थैलों के से आकार में समाप्त होती है। इन थैलों को air sacs अर्थात वायु-कोष कहते हैं।
फेफड़े (Lungs)
फेफड़े दो होते हैं। छाती की हड्डी के दोनों और एक एक फेफड़ा स्थित है। फेफड़ों का ऊपरी भाग कुछ पतला और नीचे का भाग चौड़ा होता है। फेफड़ों का निचला भाग डायाफ्राम के ऊपर टिका रहता है।
प्रत्येक फेफड़ा एक दोहरी झिल्ली के थैले में सुरक्षित रहता है। यह थैला फुफूसावरण (pleura – प्लूरा) कहलाता है। इन दोनों झिल्लियों के बीच में एक तरल पदार्थ रहता है। वह किसी भी प्रकार की रगड़, झटके या चोट से फेफड़ों की रक्षा करता है।
फेफड़ों में श्वासनलियों की छोटी-छोटी शाखाओं – प्रशाखाओं के झुंड से बन जाते हैं। इन्हीं नन्ही-नन्ही शाखाओं और वायुकोषों के झुण्ड के कारण फेफड़ों की बनावट स्पंज जैसी दिखलाई देती है।
अशुद्ध रक्त लाने वाली फुप्फुसिय धमनियों की शाखायें-प्रशाखायें भी इस जाल के साथ-साथ सब जगह फैली रहती है। फेफड़ों के पोषण के लिए शुद्ध रक्त लाने वाली रक्तनलियाँ, नाडियाँ आदि भी समस्त फेफड़ों में फैली रहती है।
श्वासोच्छवास क्रिया
श्वास अंदर खींचने पर बाहर की वायु नाक की नली से होकर श्वासनली और हवा की नालियों से होती हुई फेफड़ों के वायुकोषों में पहुँचती है।
वायुकोषों की दीवारें बहुत ही पतली होती है। और ठीक इन दीवारों के से सटकर रक्त केशिकाओं की असंख्य नलियाँ फैली रहती है।
इन रक्त-केशिकाओं की दीवारें भी बहुत पतली झिल्ली की बनी होती है।
ह्रदय से आया हुआ अशुद्ध रक्त इन रक्त-केशिकाओं से होता हुआ धीरे-धीरे प्रवाहित होता है।
रक्त-केशिकाओं में जिस समय अशुद्ध रक्त धीरे-धीरे प्रवाहित होता है, उस समय इस अशुद्ध रक्त और वायुकोषों में भरी शुद्ध वायु के बीच केवल दो पतली दीवारों का ही अंतर रहता है।
इन पतली दीवारों के भीतर से होकर गैसें एक ओर से दूसरी ओर आ जा सकती है।
केशिकाओं में पहुंचे अशुद्ध रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा बहुत कम रहती है और कार्बन डाइऑक्साइड की बहुत अधिक।
वायुकोषों में पहुंची शुद्ध हवा से ऑक्सीजन, वायुकोषों और केशिकाओं की दीवारों के भीतर से होकर, केशिकाओं के रक्त में घुस जाती है।
और अशुद्ध रक्त की कार्बन डाइऑक्साइड गैस, केशिकाओं और वायुकोषों की पतली दीवारों से होकर वायुकोषों में बची हुई वायु में मिल जाती है।
अशुद्ध रक्त में ऑक्सीजन पहुंच जाने और कार्बन डाइऑक्साइड निकल जाने से रक्त शुद्ध हो जाता है।
इस प्रकार फेफड़ों में अशुद्ध रक्त की सफाई होती है, और फिर वह शुद्ध रक्त हृदय में पहुंच जाता है।
केशिकाओं के रक्त और वायुकोषों में भरी हवा के बीच जब ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड गैस का परस्पर आदान-प्रदान हो चुका होता है, तो वायुकोषों की बची हवा में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बहुत हो जाती है।
यह हवा अशुद्ध हवा कहलाती है, क्योंकि अब इसमें ऑक्सीजन कम हो जाने के कारण, वह अशुद्ध रक्त की सफाई के योग्य नहीं रहती।
श्वास बाहर फेंक कर इस अशुद्ध वायु को हम बाहर निकाल देते हैं, और दूसरी शुद्ध वायु फिर अंदर खींच लेते हैं।
वायु अंदर फेफड़ों में ले जाने को श्वास क्रिया और अंदर की वायु बाहर निकालने को प्रश्वास क्रिया कहते हैं। श्वास और प्रश्वास दोनों सम्मिलित क्रियाओं को श्वासोच्छवास क्रिया कहते हैं।
श्वासोच्छवास क्रिया – श्वास और प्रश्वास की क्रिया कैसे होती है?
श्वासोच्छवास क्रिया निम्न प्रकार से होती है।
डायाफ्राम पेशी सिकुड़ती है।
सिकुड़ने से यह कुछ नीचे दब जाती है।
अन्य मांसपेशियों पर खिंचाव पढ़ने से पसलियाँ भी ऊपर को उठती है।
इन क्रियाओं के फलस्वरुप छाती में फेफड़ों को फैलने के लिए स्थान मिलता है, और वे फैल जाते हैं।
फेफड़ों के फैलने से बाहर की वायु नाक के छिद्रों से खींचकर फेफड़ों में पहुंच जाती है।
अब डायाफ्राम पेशी फैलती है और ऊपर उठती है।
पसलियाँ अपने पूर्व स्थान पर आती है।
डायाफ्राम के ऊपर उठने से फेफड़ों पर दबाव पड़ता है, और वे सिकुड़ जाते हैं, जिससे उनके अंदर की हवा प्रश्वास के रूप में नाक के छिद्रों से बाहर निकल जाती है।
प्रत्येक बार श्वास व प्रश्वास की क्रिया में ये सब क्रियायें होती है।
इसी से जोर से श्वास लेने पर हम छाती को ऊपर उठता बैठता देख सकते हैं।
मनुष्य एक मिनट में कितनी बार श्वास लेता है?
मनुष्य एक मिनट में 14 से 18 बार तक सांस लेता है। अधिकतर मनुष्य एक मिनट में 17 बार सांस लेते हैं।
छोटे बच्चे एक मिनट में 20 से 28 बार तक सांस लेते हैं। इसके दो कारण हैं – बच्चे अधिक गहरी सांस नहीं ले सकते, जिससे ऑक्सीजन की आवश्यकता पूरी करने के लिए उन्हें अधिक बार सांस लेना पड़ता है।
बच्चे बड़े चंचल होते हैं, और उनके शरीर की क्रियायें शीघ्रता से होती है। इसके फलस्वरूप उनके शरीर में रक्त संचालन अधिक तीव्र गति से होता है, जिससे उन्हें सांस भी जल्दी जल्दी लेने की आवश्यकता पड़ती है।
किसी भी प्रकार के स्वर में, आमाशय यकृत की किसी प्रकार की बीमारी में, एडिनॉइड, लोरी सी, ब्रोंकाइटिस जैसी बीमारियों में श्वास श्वास की क्रिया की गति बढ़ जाती है।
मुख से श्वास लेना क्यों हानीकर है?
बहुत से लोग मुख से भी सांस लेते हैं, परंतु यह उचित नहीं है। ऐसा करने से अनेक प्रकार के रोग हो जाते हैं।
हमारी नाक के छिद्रों में छोटे-छोटे बाल होते हैं। वायु में धूल आदि के जो कण मिले रहते हैं वे इन बालों से रुक कर नाक में ही रह जाते हैं, फेफड़ों तक नहीं पहुंच पाते।
मुख से श्वास लेने में इन धूल के कणों से फेफड़ों की रक्षा का कोई साधन नहीं है। इसलिए धूल के कण वायु के साथ फेफड़ों तक पहुंच जाते हैं।
नाक में जो म्यूकस श्लेष्मा रहती है, वह जीवाणु नाशक का काम करती है, और इस प्रकार वायु के सब जीवाणु नाक में ही नष्ट हो जाते हैं।
इसके अतिरिक्त नाक से होकर भीतर जाने में अधिक ठंडी या अधिक गर्म वायु का तापमान रक्त के तापमान के बराबर हो जाता है।
साथ ही बाहर की शुष्क वायु श्लेष्मा के संपर्क से कुछ नम भी हो जाती है।
इसके विपरीत मुख से श्वास लेने पर वायु ठंडी और शुष्क दशा से तथा धूल व जीवाणु सहित फेफड़ों में पहुँचती है।
इसी कारण मुख से सांस लेने से गले के रोग जैसे टॉन्सिल बढ़ना, ब्रोंकाइटिस, दांत के रोग, डिप्थीरिया, स्कारलेट ज्वर जैसे रोगों के होने की संभावना अधिक रहती है।
इसलिए स्वास्थ्य की दृष्टि से मुख से श्वास लेना अत्यंत हानीकर है।
स्वास्थ्य और श्वसन संस्थान का क्या सम्बन्ध है?
हमारे स्वास्थ्य का श्वासोच्छवास संस्थान से गहरा संबंध है। इसलिए श्वासोच्छवास संस्थान को स्वस्थ रखना अत्यंत आवश्यक है । इसके लिए उचित व्यायाम ही एकमात्र साधन है।
फेफड़ों के व्यायाम में हमें गहरी सांस लेना वह छोड़ना चाहिए।इससे फेफड़ों में दृढ़ता आती है।
गहरी सांस लेने से फेफड़ों में पूरी तरह वायु भी भर जाती है, जिससे रक्त की शुद्धि अधिक अच्छी तरह होती है।
रक्त शुद्ध होने से समस्त शरीर का स्वास्थ्य ठीक रहता है।
इसलिए सदा श्वास संबंधी व्यायाम अवश्य करते रहना चाहिए।
साथ ही यह भी ध्यान रखना चाहिए कि खुले स्थान पर और शुद्ध वायु में व्यायाम किया जाए, अन्यथा यदि वायु अशुद्ध होगी तो लाभ के स्थान पर हानि ही होगी।
कसरत के समय श्वास क्यों तेज हो जाती है?
यह हम जानते है कि कसरत करते समय या किसी भी परिश्रम के अवसर पर साँस की क्रिया तेज़ हो जाती है।
ऐसा क्यों होता है? बात यह हैं कि बढ़ी हुई हरकत के कारण पेशियाँ ज्यादा ऑक्सीजन ग्रहण करती हैं, और साथ ही उनमें ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड पैदा होती है।
इस तरह रक्त में कार्बन डाइऑक्साइड की ज्यादा मात्रा हो जाने से दिमाग मे सांस संबंधी केंद्र पर एक खास प्रभाव पड़ता है, जिससे श्वास संबंधी पेशियो में गति होती है, और सांस की क्रिया पहले से ज्यादा तेज़ हो जाती है।
इस तेजी से दो बातें होती है –
- ज्यादा ऑक्सीजन अंदर आती है और रक्त साफ होता है, और
- शिराओं के अन्दर रक्त का प्रवाह तेज हो जाता है।
सिर्फ ज्यादा हवा ही अन्दर नहीं, बल्कि साँस लेते समय ज्यादा रक्त फैले हुए फेफडों में खींचता है और सांस फेंकते समय ज्यादा रक्त फेफड़ों से निकलता है।